Last Updated on February 21, 2021 by Shiv Nath Hari
Chaitra Navratri 2021: कब से शुरू हो रही चैत्र नवरात्रि? जानें कलश स्थापना की विधि, मुहूर्त और पूजा विधि
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Chaitra Navratri 2021: हिंदू धर्म में नवरात्रि का पर्व वर्ष में चार बार आता है. चैत्र शारदीय नवरात्रि के साथ दो भी नवरात्रि होती हैं, जिन्हें माघ नवरात्रि आषाढ़ नवरात्रि कहा जाता है. नवरात्रि के पर्व में मां दुर्गा के अलग अलग 9 स्वरूपों की पूजा अर्चना की जाती है. माघ नवरात्रि के बाद चैत्र नवरात्रि का पर्व मनाया जाता है. नवरात्रि का यह बहुत ही विशेष माना जाता है. इसकी धार्मिक मान्यता भी अधिक है. पंचांग के अनुसार इस साल 2021 में चैत्र नवरात्रि 13 अप्रैल से शुरू हो रही है इसका समापन 22 अप्रैल को होगा. चैत्र नवरात्रि में मां दुर्गा के नौ अलग-अलग स्वरूपों शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी सिद्धिदात्रि की पूजा-अर्चना की जाती है.
- 13 अप्रैल प्रतिपदा- घट/कलश स्थापना-शैलपुत्री
- 14 अप्रैल द्वितीया- ब्रह्मचारिणी पूजा
- 15 अप्रैल तृतीया- चंद्रघंटा पूजा
- 16 अप्रैल चतुर्थी- कुष्मांडा पूजा
- 17 अप्रैल पंचमी- सरस्वती पूजा, स्कंदमाता पूजा
- 18 अप्रैल षष्ठी- कात्यायनी पूजा
- 19 अप्रैल सप्तमी- कालरात्रि, सरस्वती पूजा
- 20 अप्रैल अष्टमी- महागौरी, दुर्गा अष्टमी, निशा पूजा
- 21 अप्रैल नवमी- नवमी हवन, नवरात्रि पारण
इस दिन होगी घटस्थापना?
चैत्र नवरात्रि के पहले दिन 13 अप्रैल को कलश स्थापना की जाएगी. नवरात्रि में घटस्थापना या कलश स्थापना का खास महत्व है. विधिपूर्वक कलश स्थापना करने से इसका पूर्ण लाभ प्राप्त होता है.
महानिशा पूजा
नवरात्र में महानिशा पूजा सप्तमी युक्त अष्टमी या मध्य रात्रि में निशीथ व्यापिनी अष्टमी में की जाती है. इस साल चैत्र नवरात्रि में महानिशा पूजा 20 अप्रैल को की जाएगी.
नवरात्र पूजा विधि
चैत्र नवरात्र की प्रतिपदा तिथि को प्रात: काल स्नान करने के बाद आगमन, पाद्य, अर्घ्य, आचमन, स्नान, वस्त्र, यज्ञोपवीत, गंध, अक्षत-पुष्प, धूप-दीप, नैवेद्य-तांबूल, नमस्कार-पुष्पांजलि एवं प्रार्थना आदि उपचारों से पूजन करना चाहिए. नवीन पंचांग से नव वर्ष के राजा, मंत्री, सेनाध्यक्ष, धनाधीप, धान्याधीप, दुर्गाधीप, संवत्वर निवास फलाधीप आदि का फल श्रवण करें. निवास स्थान को ध्वजा-पताका, तोरण-बंदनवार आदि से सुशोभित करें.
देवी के स्थान को सुसज्जित कर गणपति मातृका पूजन कर घट स्थापना करें. लकड़ी के पटरे पर पानी में गेरू घोलकर नौ देवियों की आकृति बनाएं या सिंह वाहिनी दुर्गा का चित्र या प्रतिमा पटरे पर या इसके पास रखें. पीली मिट्टी की एक डली व एक कलावा लपेट कर उसे गणेश स्वरूप में कलश पर विराजमान कराएं. घट के पास गेहूं या जौ का पात्र रखकर वरुण पूजन भगवती का आह्वान करें.