Last Updated on July 16, 2020 by Swati Brijwasi
Harela festival 2020: हरियाली और हरित संस्कृति का प्रतीक हरेला पर्व,हरेला लायेगा हरियाली – हरेला लायेगा खुशहाली-स्वामी चिदानन्द सरस्वती
- हरेला पर्व हर एक का पर्व-हरेला पर्व की शुभकामनायें
- हमें उपभोक्तावाद के स्थान पर बुनियादी जरूरतों को सर्वोच्चता देना होगा
- हम प्रकृति के विनाश के लिये नहीं बल्कि विकास के लिये बने है
- पेड़ है तो पानी है, पानी हैं तो जीवन है
- हरेला मनाये, हरियाली लाये, खुशहाली पायें
- हरेला लायेगा हरियाली – हरेला लायेगा खुशहाली-स्वामी चिदानन्द सरस्वती

Harela festival 2020: 16 जुलाई, ऋषिकेश। हरेला पर्व, उत्तराखंड की हरित संस्कृति का प्रतीक है और यह हमारी हरित संस्कृति को भी उजागर करता हैं। यह पर्व उत्तराखंड का एक महत्वपूर्ण लोक त्योहार है जिसमें फसलों की समृद्धि के लिए प्रार्थना की जाती है।
परमार्थ निकेतन के परमाध्यक्ष स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी ने प्रदेशवासियों को हरेला पर्व की शुभकामनायें देते हुये कहा कि हरियाली और अपार जलराशि से युक्त हमारे उत्तराखंड को और समृद्ध बनाने के लिये वृक्षारोपण, वृक्षों का संवर्द्धन और संरक्षण बहुत जरूरी है। एक वृक्ष सौ पुत्रों के समान है और वृक्षों को इतनी महत्ता इसलिये दी गयी है क्योंकि पुत्रों का, पीढ़ियों का, परिवारों का भरण-पोषण भी तभी हो पायेगा जब पृथ्वी पर पेड़ होंगे; पेड़ होंगे तो पानी होगा और पानी होगा तो ही जीवन होगा। स्वामी जी ने कहा कि पेड़ है तो पानी है, पानी है तो जीवन है और जीवन हैं तो दुनिया है।
आज हरेला के पावन अवसर पर परमार्थ निकेतन में स्वामी चिदानन्द सरस्वती जी, साध्वी भगवती सरस्वती जी एवं परमार्थ गुरूकुल के ऋषिकुमारों ने सोशल डिसटेंसिंग का गंभीरता से पालन करते हुये परमार्थ प्रांगण में अशोक के पौधों का रोपण किया। इस अवसर पर स्वामी जी ने कहा कि उत्तराखंड की धरती दिव्य संस्कारों से युक्त है और हरेला शब्द का तो तात्पर्य ही हरयाली से हैं। हरेला, हमें प्रकृति की सम्पन्न्ता और समृद्धि से परिचय कराता है। हमारे राज्य ने तो प्रकृति संरक्षण के अनेेक उदाहरण दिये है। चमोली, उत्तराखंड की गौरा देवी, सहित कई महिलाओं ने पेड़ों से चिपककर उन्हें कटने से बचाया था। इस आंदोलन ने पर्यावरण संरक्षण में महत्वपूर्ण भूमिका निभायी थी।
वर्तमान समय में हम सभी को पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूक होना होगा क्योंकि पर्यावरण असंतुलन का कृषि पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है। पर्यावरण असंतुलन के कारण प्राकृतिक आपदाओं के साथ पहाड़ी राज्यों को अनेक चुनौतीपूर्ण समस्याओं का सामना भी करना पड़ता है।
स्वामी जी ने कहा कि हमारे शास्त्रों तथा हमारी परम्पराओं में पेड़-पौधों के साथ ही पशु-पक्षियों के संरक्षण की संकल्पना भी विद्यमान है। जल-स्रोतों का संरक्षण, वृक्षों का पूजन, गंगा पूजन, कुओं की पूजा व तालाब की पूजा करना आदि हमारी संस्कृति का महत्वपूर्ण अंग है।
स्वामी जी ने कहा कि पारिस्थितिकी और पर्यावरण का हम सभी के जीवन पर सीधे प्रभाव पड़ता है इसलिये पर्यावरण संरक्षण में हम सभी का योगदान भी जरूरी है। हमें उपभोक्तावाद के स्थान पर बुनियादी जरूरतों को सर्वोच्चता देनी चाहिये। प्रकृति संरक्षण को ध्यान में रखते हुये किया गया विकास ही हमारी प्रगति का प्रतीक हो। हम प्रकृति के शोषक नहीं बल्कि पोषक बनें। मनुष्य और प्रकृति के बीच परस्पर आश्रित संबंध है और इसे बनाये रखना हम सभी का परम कर्तव्य है। उन्होंने कहा कि हमें स्थानीय रूप से उपलब्ध संसाधनों के उपयोग करना चाहिये तथा हमें प्राकृतिक संसाधनों के समझदारी भरे उपयोग पर आधारित जीवन जीना चाहिये।
हम प्रकृति के विनाश के लिये नहीं बल्कि विकास के लिये बने है। गांधी जी का प्रसिद्ध कथन “पृथ्वी के पास सभी की जरूरतों को पूरा करने के लिए पर्याप्त संसाधन हैं, लेकिन हर किसी के लालच को नहीं” हमें इस कथन पर अमल करना होगा और इसके अनुरूप जीवन जीना होगा तभी हम अपने और अपनी आने वाली पीढ़ियों के भविष्य को बचा सकते है। हरेला पर्व हमें यही संदेश देता है, हरेला मनाये, हरियाली लाये, खुशहाली पाये।